Sunday 8 December 2019

लीडर की विशेषताएँ

 



लीडर शब्द अपने आप में ही महत्वपूर्ण है , एक समर्थ लीडर में निम्न महत्वपूर्ण गुण होते हैं।

  • लीडर जिम्मेदार व्यक्ति होता है 
  • अपने समूह का सामने से नेतृत्व करता है । 
  • लीडर के पास अपनी एक योजना होती है । 
  • लीडर अपनी टीम और दुनिया के लिए  उदाहरण प्रस्तुत करता है । 
  • लीडर एक सच्चा और अच्छा performer  होता है । 
  • लीडर अपने कार्यक्षेत्र का सम्पूर्ण ज्ञान रखता है और संबन्धित विषय पर सम्पूर्ण अधिकार रखता है । 
  • लीडर लक्ष्य के अनुसार अपनी कार्यशैली नियमित करता है । 
  • लीडर का हृदय विशाल होता है , बड़े लक्ष्य के लिए बहुत सी छोटी छोटी बातों से परे होता है ।  
  • लीडर अपनी टीम के प्रत्येक सदस्य का आदर और सम्मान करता है । 
  • लीडर से टीम होती है , टीम से लीडर नहीं । 
  • लीडरशिप के गुण  जन्मजात नहीं होते वरन परिश्रम, सीखने की ललक और सफलता हेतु aggression से लीडरशिप के गुण प्रकट होते हैं ।  
  • लीडर अपनी कमजोरियों और मजबूती को समझ कर, अपने आचरण के प्रभावी गुणों का विकास करता है। 
  • लीडर अपनी टीम के प्रत्येक सदस्य के गुणों के अनुसार उन्हे कार्य सौपता है। 
  • लीडर में अपनी टीम के सभी सदस्यों से परिणाम निकालने की क्षमता रखता है । 
  • लीडर हर संभव चुनौती स्वीकार करने को तत्पर रहता है । 
       Mahendra Srivastastava
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Monday 23 September 2019

हर्पीज - परिचय , लक्षण ,रोकथाम व उपचार


हर्पीज एक खतरनाक, अत्यंत पीड़ा देने वाला संचारी रोग है। यह मूलतः वाइरस/विषाणु जनित रोग है। यह एक प्रकार की चेचक होती है। इस रोग के वाइरस को हर्पीज जोस्टर कहते हैं।  यह तंत्रिकाओं को सीधे प्रभावित करता है, इसी कारण इसका असर शरीर के किसी एक हिस्से , दाहिने या बाएँ तरफ होता है। तंत्रिकाओं पर प्रकोप के कारण यह अत्यंत पीड़ा कारी होता है।

लक्षण - शरीर के किसी एक ओर (दाहिने या बाएँ ) हिस्से में इसका प्रकोप होता है। प्रारम्भ में कुछ दानें गुच्छे के रूप मे एक जगह होते हैं,  दूसरे दानों की अपेक्षा इसमें अत्यधिक पीड़ा, शूल और जलन होती है, जहां त्वचा पर इसका प्रकोप होता है उस हिस्से में जलन इतनी ज्यादा होती है कि उस स्थान पर से ऊष्मा(गर्मी) निकलती हुई प्रतीत होती है, दर्द भी गंभीर होता है और फिर यह फैलने लगता है, उस अंग में अकड़न, सूजन और लाली भी दिखने लगती है, शूल इतना गंभीर होता है कि रोगी को कपड़े पहने में भी तकलीफ होती है , दर्द रात भर सोने नहीं देता है। यदि प्रकोप पीठ और सीने पर है तो उस साइड से लेटना भी संभव नहीं होता है। आगे पीछे दोनों ओर से बढ़ता है। बहुधा यह पीठ- सीने में या फिर चेहरे पर कान से सिर कि ओर भी होता है।  प्रारम्भ में अंधोरियों जैसे दाने होते हैं, फिर दाने बढ़ते हुये छाले का रूप ले लेते है , त्वचा एकदम लाल सुर्ख होती जाती है, यदि रोगी का इम्यून (रोग प्रतिरोधक क्षमता) सही होती है, तो यह 15 दिन तक कम से कम इसका प्रकोप रहता है। सही समय और सही चिकित्सा न होने पर, कुछ रोगियों को यह दो तीन महीने या फिर कई कई साल तक भी इसका प्रभाव देखा गया है। कुछ रोगियों की इसके प्रकोप से मृत्यु भी हुई है।अतः इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को शीघ्र ही विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए और बहुत संजीदा होकर इलाज करना चाहिए।
रोकथाम - हर्पीज़ रोग पहचानते ही यदि तुरंत ही चिकत्सा प्रारम्भ हो जाए तो पीड़ा को कम किया जा सकता है। विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों मे इसका इलाज किया जाता है, लेकिन स्थायी इलाज के बारे में मान्यता है की होम्योपैथी में ही है। त्वरितपीड़ा से लाभ के लिए एलोपैथी इलाज कर सकते है। यदि किस कारण से डॉक्टर से इलाज नहीं प्रारम्भ हो रहा हो तो निम्न कार्य करें -
1. दानों पर लगाने के लिए आसपास के किसी मेडिकल स्टोर से acyclovir salt युक्त क्रीम लेकर लगाएँ ।
2. रोगी के आसपास सफाई का विशेष ध्यान रखें।
3. बिना तेल मसाले का खाना दें, गर्म तासीर का भोजन न दें , ठंडी चीजों का सेवन ज्यादा कराएं।
4. कपूर को आधा कप पानी में भिगो लें और नीम की पत्तियों से बार बार प्रभावित स्थान पर छिड़काव करें
5. यदि त्वचा ज्यादा गर्म हो रही हो तो ठंडे पानी से एक दो बार स्नान करा दें। (गर्मियों के मौसम में)
6. रोगी को खुले वातावरण में और ठंडे वातावरण में रखें और तीमारदार को भी  सफाई का विशेष ध्यान रखना होता है। इन्फ़ैकशन से बचते हुये रोगी की सेवा करें , रोगी के बिस्तर पर नीम की पत्तियाँ किसी एक साइड रख दें , रोगी के कमरे में कपूर को सुलगाये, फिनयल से पोछा जरूर लगवाएँ ।
7. विटामिन -c युक्त आहार अधिक से अधिक दें ,मौसमी फल , मेवा ,दही और मोसम्मी का रस का सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है।
   उपयुक्त प्रकार से आप इस रोग के प्रकोप को संतुलित कर सकते हैं, फिर भी यह कम से कम 15 दिन तक रोगी को बिलकुल भी चैन नहीं लेने देता है।  रोग का प्रभाव कम होने पर काफी दुर्बलता होती है।  अतः खानपान का विशेष ध्यान रखे और इलाज को ठीक होने के बाद भी लगातार करें , स्थायी लाभ के लिए होम्योपैथी का इलाज करें । मैं इस लेख को तब लिख रहा हूँ जब मैं खुद इस रोग से पीड़ित हूँ , आज लगभग 15 दिन और  80% लाभ के बाद ही यह लेख लिखने का कारण यह है कि यदि कोई भी इस रोग के चपेट में आए तो कम से कम पीड़ा में वह ठीक हो सके। इस लेख के बारे में अपनी राय comment बॉक्स में जरूर लिखें।
महेंद्र श्रीवास्तव
09335928449
09918800522











Friday 26 July 2019

लक्ष्य निर्धारण


8.                    DREAMS/TARGET  ALLOCATION ( लक्ष्य निर्धारण ) 
      लक्ष्य निर्धारण हम कई बार करते हैं, और उनका जम कर प्रचार भी करते हैं, किन्तु जैसे ही कुछ समय बीतता है , हम पुनः एक नया लक्ष्य और नया कार्यक्रम टीम के समक्ष रख देते हैं , इस कृत्य से, हमारा लीडरशिप और टीम के समक्ष प्रभुत्व क्षीण होने लगता है, अतः लक्ष्य निर्धारण बेहद संतुलन  और समझदारी के साथ करें। लक्ष्य का निर्धारण करने से पूर्व निम्न बिंदुवों पर एक अभ्यास कर लें –
·        लक्ष्य वास्तविक है या नहीं
·        लक्ष्य का उद्धेश्य क्या है 
·        लक्ष्य पर आपको खुद विश्वास है या नहीं 
·        लक्ष्य के समरूप खुद में और टीम में क्षमता है या नहीं
·        लक्ष्य को प्राप्त करने में लगने वाला समय का मूल्य लक्ष्य के समानुपात में है या नहीं
·        लक्ष्य को प्राप्त करने की क्या प्रभावी योजना हो सकती है
·        प्रथम योजना के साथ बैक अप योजना क्या है
·        योजना हेतु संसाधन क्या क्या आवश्यक हैं और वह उपलब्ध है या नहीं उपरोक्त बिंदुवों को एक बार विचार में रख कर योजना बनाएँ और तदोपरांत लक्ष्य के लिए प्रयास प्रारम्भ करना चाहिए।
·        लक्ष्य के लिए समर्पण की भावना होनी चाहिए और आपके समर्पण के साथ टीम का समर्पण भी आवश्यक है।
·        लक्ष्य व्यग्तिगत लाभ हेतु नहीं निर्धारित होना चाहिए।
   उपरोक्त अभ्यास के उपरांत ही लक्ष्य बेहतर ढंग लिया जा सकता है। यदि आप अपनी टीम अर्थात कैश बॉक्स से एक बड़ा लक्ष्य पाना चाहते हैं तो , आपको अलग-अलग स्तर पर टीम बाँट कर सबमें छोटा छोटा लक्ष्य वितरित कर दीजिए , आप देखेंगे कि सामूहिक स्तर पर वही व्यापार कई गुना बड़ा होगा।







Wednesday 23 January 2019

नशेड़ी


नशेड़ियों का कोई धर्म, जाति, वैचारिक प्रतिबद्धता और भविष्य की योजनाएं नहीं होती हैं। यह कभी भी एक लक्ष्य लेकर कोई मिशन फतेह नहीं कर सकते। इनका प्रतिदिन का लक्ष्य एक ही होता है कि कैसे आज शाम का जुगाड किया जाए और अपने शुभचिंतकों के सामने अपने को सामान्य प्रदर्शित किया जाए। नशा प्रारंभ में एक स्टेटस सिंबल के प्रतीकस्वरूप होता है, किन्तु समय के साथ यह एक भीषण और ला-इलाज गंभीर बीमारी का रूप ले लेता है। नशेड़ी अपने को योग्य प्रदर्शित करने के लिए सदैव तत्पर और शब्दों के जाल बुनने की कला में निपुण होते हैं। प्रतिदिन अपने को सुधारने का संकल्प लेने के बावजूद यह सुधार नहीं कर पाते हैं। नशे की लत के कारण कई योग्य और गुणवान वह सबकुछ जिसके वह सही पात्र थे उससे वंचित रह जाते हैं। मेरा आग्रह है कि अपनी योग्यता जोकि परम् पिता परमेश्वर ने आपको इस धरती पर सुगंध फैलाने हेतु प्रदान की है, उसे नशे की लत में बेजा ही धुवां ना होने दे

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